इक तारा लेकर रेल गाड़ी में गाते देखा था उसको और नंगे पांव फ़टे कपड़े दाड़ी बड़ी हुई और काली सी चादर पैसो के लिए बढ़ते हाथ उसकी आवाज में जादू था जो आज भी गूँजता इतने वर्ष बीत जाने के बाद खेर रेल गाड़ी में मेरे साथ बैठे कुछ यात्रियों ने सिक्के फ़टे पुराने नोट उसकी हथेली में थमा …