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लघुकथा के नए मानदंड स्थापित करेगा ‘ बीसवाँ कोड़ा ‘ – डॉ शमीम शर्मा

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लघुकथा के नए मानदंड स्थापित करेगा ‘ बीसवाँ कोड़ा ‘ – डॉ शमीम शर्मा
प्रगतिशील लेखक संघ , सिरसा एवं पंजाबी लेखक सभा , सिरसा के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार हरभगवान चावला के लघुकथा संग्रह ‘ बीसवाँ कोड़ा ‘ के लोकार्पण के अवसर पर जननायक विद्यापीठ के सेमिनार हॉल में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया । कार्यक्रम का प्रारंभ कुलदीप सिंह तथा महक भारती के गीतों से हुआ । पंजाबी लेखक सभा के प्रधान परमानन्द शास्त्री ने अतिथियों का परिचय करवाया तथा श्रोताओं का स्वागत किया । हरभगवान चावला द्वारा लिखित लघुकथा संग्रह ‘ बीसवाँ कोड़ा ‘ के लोकार्पण के बाद सुरजीत सिरडी , वीरेंद्र भाटिया , अनीश कुमार द्वारा लघुकथाओं का पाठ किया गया । सुप्रसिद्ध रंगकर्मी संजीव शाद ने शीर्षक लघुकथा ‘ बीसवाँ कोड़ा ‘ को नाटकीय अंदाज़ में प्रस्तुत किया । जिसे खूब सराहना मिली ।


विचारगोष्ठी की मुख्यवक्ता जेसीडी विद्यापीठ की निदेशिका डॉ शमीम शर्मा ने ‘ बीसवाँ कोड़ा एवं लघुकथा के मानदंड ‘ विषय पर सारगर्भित वक्तव्य दिया । उन्होंने कहा कि हरभगवान चावला द्वारा लिखित लघुकथा संग्रह ‘बीसवाँ कोड़ा ‘ लघुकथा के नए मानदंड स्थापित करेगा । इस संग्रह की ज़्यादातर लघुकथाएं सदियों से चले आ रहे शोषण के ख़िलाफ़ चेतना पैदा करती हैं । उन्होंने रेखांकित किया कि हरभगवान चावला की लघुकथाओं में लघुकथा के बेहतरीन रंगों के साथ ही कविता एवं ग़ज़ल का आस्वाद भी है ।
विचारगोष्ठी में हिसार डीएन कॉलेज की असिस्टेंट प्रो युवा आलोचक डॉ निर्मल बंजारन ने कि कहा कि लेखन का मक़सद शोषितों , पीड़ितों का पक्षधर होना है । इस पैमाने पर हरभगवान चावला का लेखन पूरी तरह खरा उतरता है ।
सुप्रसिद्ध चिंतक स्वर्ण सिंह विर्क ने लघुकथा संग्रह ‘ बीसवाँ कोड़ा ‘ का समसामयिक संकटों के मद्देनजर विश्लेषण किया । उन्होंने रेखांकित किया कि वर्तमान समय में लेखकों की चुनौतियां एवं ज़िम्मेदारियाँ बढ़ी है । साम्प्रदायिक सद्भाव को बचाने तथा अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत लोगों के लिए लेखकों को और अधिक सक्रियता से लेखनकार्य करना होगा । उन्होंने संग्रह की अनेक लघुकथाओं के उदाहरण देकर स्पष्ट किया कि हरभगवान चावला का लेखन बेहतर जीवन के लिए संघर्ष कर रहे लोगों के लिए अँधेरे समय में मशाल का काम करेगा ।
वरिष्ठ साहित्यकार प्रो रूप देवगुण ने कहा कि इस लघुकथा संग्रह की ज्यादातर लघुकथाएं मानवीय सरोकारों का प्रतिनिधित्व करती हैं । उन्होंने लघुकथा के मानदंडों पर चर्चा करते हुए कहा कि इसमें मानवेतर पात्र नहीं होने चाहिएं । प्रो रूप देवगुण ने ‘ बीसवाँ कोड़ा ‘ संग्रह की कुछ लघुकथाओं का मानदंड पर खरे न होना भी रेखांकित किया ।

हरभगवान चावला ने विचारगोष्ठी में कहा कि उनका लेखन गमले में सजे पौधे जैसा न होकर जंगली पौधों की तरह स्वाभाविक रूप विस्तारग्रहण करता है । लेखन स्थापित नियमों , मानदंडों का अतिक्रमण करता ही है
अंत में प्रगतिशील लेखक सभा के प्रधान रमेश शास्त्री ने अतिथियों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया । मंच संचालन पंजाबी लेखक सभा के महासचिव प्रो हरविंदर सिंह ने किया ।

कार्यक्रम को सफल बनाने में जेसीडी बीएड कॉलेज के स्टाफ तथा डाइट , डिंग के छात्राध्यापकों ने विशेष भूमिका निभाई । इस अवसर पर डॉ जय प्रकाश , लाजपुष्प , प्रदीप सचदेवा , भूपिंदर पन्नीवालिया , प्रभु दयाल , भाई गुरविंदर सिंह , शील कौशिक , विशाल वत्स , डॉ प्रेम कंबोज , डॉ के के डूडी , हरवेल विर्क , गुरसाहिब सिंह , तेजेन्द्र लोहिया , डॉ शेर चंद , सुरजीत रेणु , तिलकराज विनायक , महिंदर सिंह नागी , अमर चंद चावला , ललिता चावला , एंजल , छिंदर कौर , उर्मिल मोंगा , सुतन्तर भारती , पुरषोत्तम शास्त्री , गुरबख्श मोंगा दीपक सांवरिया समेत बड़ी संख्या में लेखक , शिक्षक एवं विभिन्न सामाजिक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे ।

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