हर कोई घर से निकलता
कुछ खरीदने
या कुछ
बेचने
या
फिर नगद
या
उधार
ये है
बाजार……..
कुछ ऐसे भी है
न लाभ
न हानि
ना हिसाब
न किताब
और सिर्फ खाली हाथ
उनके लिए
सिर्फ इक चक्कर है
बाज़ार
और शाम को घर आ कर सोचते है
धरती गोल है
बाकि सब के लिए धरती
चपटी तिकोनी
गज फुट इंच
और
ब्याज है जो दिन और रात
को भी
घड़ी की सुई
के साथ
चलता रहता है
फिर भी
हर कोई
हर वक्त
है
खाली हाथ
और
बाज़ार …………… और ख्बाव ।।
Sanjivv Shaad