गुरतेज सिंह :
चार दीवारें : – घर की चार दीवारों में बस कुछ कुछ लोग ही नही, कितने अधमरे ख़्वाब, अधूरी ख्वाहिशें और टूटे सपने भी रहते हैं ।।
आंखों में बिखरा हुआ टूटा सा कितना कुछ लेके घूमती है घर की औरतें, कभी उनसे भी दिल भर के बातें कीजिए अच्छा लगेगा