Home साहित्य दर्पण “ज़माने के जिस दौर से हम इस वक्त गुज़र रहे हैं अगर आप उससे अनजान हैं तो मेरे अफसाने पढ़िए।

“ज़माने के जिस दौर से हम इस वक्त गुज़र रहे हैं अगर आप उससे अनजान हैं तो मेरे अफसाने पढ़िए।

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संडे थियेटर में हुआ नाटक ‘बेबाक मंटो’ का मंचन

रोहतक, 12 अप्रैल। “ज़माने के जिस दौर से हम इस वक्त गुज़र रहे हैं अगर आप उससे अनजान हैं तो मेरे अफसाने पढ़िए। अगर आप इन अफसानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते, तो इसका मतलब है कि यह ज़माना नाकाबिले बर्दाश्त है।… मैं इस सभ्य सोसायटी की चोली क्या उतारूंगा, जो है ही नंगी।” ये संवाद हैं

सप्तक रंगमंडल, पठानिया वर्ल्ड कैम्पस और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा हर सप्ताह होने वाले संडे थियेटर के इस बार के नाटक ‘बेबाक मंटो’ के। नाटक में दक्षिण एशिया के जाने माने कहानीकार सआदत हसन मंटो की एक कहानी का मंचन किया गया, जिसमें जिस्म बेचने को मजबूर एक औरत की मनःस्थिति तथा उसके बारे में लोगों की विकृत मानसिकता को दिखाया गया। नाटक में दिखाया गया कि कोई औरत वेश्या इस लिए है क्योंकि समाज में उसके ग्राहक मौजूद हैं। अगर वेश्या न हो तो जिस्मफरोशी के आदी पुरुष बहन-बेटियों का जीना मुश्किल कर देंगे।नाटक में यह संदेश भी दिया गया कि हम जिस्मफरोशी करने वाली औरत को बुरी निगाह से न देखें, क्योंकि अपने बुरे समझे जाने वाले काम के बावजूद वह एक रोशन रूह की मालिक हो सकती है।

‘मित्र रंगमंच दिल्ली’ द्वारा प्रस्तुत इस नाटक का निर्देशन अनिल शर्मा ने किया, जबकि नाटक के एकल अभिनेता दक्ष वशिष्ठ रहे। दक्ष ने अपने बेहतरीन अभिनय से एक वेश्या के साथ-साथ उसके दलाल तथा अलग-अलग तरह के ग्राहकों के कई किरदारों को जीवंत किया। उनका अभिनय इतना सशक्त रहा कि बीच में लाईट चले जाने के बाद दर्शकों ने इंतज़ार करने की बजाए मोबाइल-टॉर्च की रोशनी में नाटक देखना उचित समझा। नाटक को देखकर मंच संचालन कर रही सुजाता की आंखें भी भर आईं। उन्होंने कहा कि पुरुष होकर भी दक्ष ने एक औरत के दर्द को जिस बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है, वह काबिले तारीफ है। मुख्य अतिथि तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के पूर्व निदेशक कैलाश वर्मा, फिल्म अभिनेता एवं संस्कृतिकर्मी राघवेन्द्र मालिक रंगकर्मी जगबीर राठी, विश्वदीपक और शक्ति सरोवर त्रिखा ने स्मृति चिन्ह व पुष्प देकर कलाकारों को सम्मानित किया।

सप्तक के सचिव अविनाश सैनी ने बताया कि मंटो अपने समय के काफी बोल्ड कहानीकार रहे हैं। उनकी कहानियों में बंटवारे के दर्द को जिस बेबाकी से उठाया गया है, उतनी ही बेबाकी से उन्होंने स्त्री-पुरुष संबंधों पर भी लिखा है। इसी के चलते वे हमेशा विवादों में रहे और उन पर मुकद्दमें भी चले। इसके बारे में मंटो का कहना था कि अगर हम अपनी कमियां नहीं देख सकते तो उन्हें दूर करें, पर छुपाएं नहीं। सप्तक के अध्यक्ष विश्वदीपक त्रिखा ने कहा कि प्रस्तुत नाटक ने हमें सोचने को मजबूर किया कि आखिर अपने स्वार्थों के चलते हमने कैसा समाज बनाया है और कैसा दोगला जीवन जी रहे हैं। इस अवसर पर कैलाश वर्मा, फिल्म अभिनेत्री अंजवी हुड्डा, एनएसडीयन अजय खत्री, विजय खत्री, करण सैनी, अनिल बागड़ी, सुभाष नगाड़ा, हरीश गेरा, यतिन वधवा, वीरेन्द्र फोगाट, डॉ. हरीश वशिष्ठ, सौरभ वर्मा, विकास रोहिल्ला, रिंकी बत्रा, सुरेंदर कृष्ण, मनोज कुमार, अगम प्रसाद, ब्रह्मप्रकाश, जगदीप, श्रीभगवान शर्मा, सुरेन सरकार, सन्नी कौशिक, अविनाश सैनी विशेष रूप से उपस्थित थे।

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